EPISODE 2
द्वार पर आए हुए हर -एक कि आव-भगत में कोई कसर न छोड़ी जाती ।
कुएं से प्यासा, प्यासा वापस लौट सकता था, मगर शायद ही कभी ऐसा हुआ कि बिरजू ठेकेदार के द्वार से कोई निर्धन बैरंग वापस लौटा हो। बल्कि मानव-सेवा में श्रद्धा रखने वाले बिरजू द्वारा माह में दो-तीन बार भोज का आयोजन भी किया जाता, जिसमें गरीब फ़कीर सविनय आमंत्रित रहते ।
धर्म -कर्म में विश्वास था, तो घर में सुबह-शाम दोनों समय पूर्जा-अर्चना होती ।
मां-बाप तो कबके मृत्यु को प्यारे हो चले थे, तब बिरजू ने कड़ा परिश्रम, मजदूरी आदि करके यह मुकाम हासिल किया ।
मजदूरी जी-तोड़ व ईमानदारी से करता, तो मालिक ने उसे मुंशी नियुक्त कर दिया । और देखते ही देखते वह मुंशी ठेकेदार हो चला । घर-द्वार जोड़ लिया, घर में पैसे भी आने लगे तो आसानी से ब्याह हो गया।
किस्मत भी साथ थी, तो पत्नी (मालती) भी ऐसी पतिपरायणा मिली, जो आठों पहर बिरजू का खयाल करती । मालती एक बेहद गरीब परिवार में जन्मी जरूर थी, किन्तु रूपवती, गुणवती, विचारशील ऐसी कि इन्द्र की अप्सराएं भी कुएं में कूद पड़े ।
ब्याह हो जाने के वर्ष भर बाद मालती ने एक बालक को जन्म दिया।
गांव भर में जलसा हो गया, पूरे गांव को ही दावत पर बुलाया गया, छप्पन किस्म के पकवान पके । भोज में शरीक हुए बच्चों ने मिठाइयों का एक अणु तक ना छोड़ा । दावत में आए हुए हर-एक व्यक्ति ने हृदय से आशीर्वाद दिया, बालक पूरे गांव की ही आंखों का तारा हो गया ।
उन दिनों स्वतंत्रता संग्राम चरम पर था, बिरजू के मन में भी आजादी की लड़ाई के प्रति श्रद्धा जाग उठी ।
जगह-जगह अंग्रेजी छावनियों में विद्रोह करने लगा, बैठकों, रैलियों, व स्वतंत्रता की योजनाएं बनाने में वह दसों दिन घर से नदारद रहने लगा । देशभक्ति का ऐसा स्वाभिमान छा गया कि घर-परिवार की सुध ना रही ।
ना ही पत्नी पर ध्यान गया, ना ही कभी बालक का विचार मन में आया ।
कहा जाता है कि उस दिन जब बिरजू ठेकेदार घर लौटा तो मालती और उसका बालक मृत पड़े थे...
To be continued
द्वार पर आए हुए हर -एक कि आव-भगत में कोई कसर न छोड़ी जाती ।
कुएं से प्यासा, प्यासा वापस लौट सकता था, मगर शायद ही कभी ऐसा हुआ कि बिरजू ठेकेदार के द्वार से कोई निर्धन बैरंग वापस लौटा हो। बल्कि मानव-सेवा में श्रद्धा रखने वाले बिरजू द्वारा माह में दो-तीन बार भोज का आयोजन भी किया जाता, जिसमें गरीब फ़कीर सविनय आमंत्रित रहते ।
धर्म -कर्म में विश्वास था, तो घर में सुबह-शाम दोनों समय पूर्जा-अर्चना होती ।
मां-बाप तो कबके मृत्यु को प्यारे हो चले थे, तब बिरजू ने कड़ा परिश्रम, मजदूरी आदि करके यह मुकाम हासिल किया ।
मजदूरी जी-तोड़ व ईमानदारी से करता, तो मालिक ने उसे मुंशी नियुक्त कर दिया । और देखते ही देखते वह मुंशी ठेकेदार हो चला । घर-द्वार जोड़ लिया, घर में पैसे भी आने लगे तो आसानी से ब्याह हो गया।
किस्मत भी साथ थी, तो पत्नी (मालती) भी ऐसी पतिपरायणा मिली, जो आठों पहर बिरजू का खयाल करती । मालती एक बेहद गरीब परिवार में जन्मी जरूर थी, किन्तु रूपवती, गुणवती, विचारशील ऐसी कि इन्द्र की अप्सराएं भी कुएं में कूद पड़े ।
ब्याह हो जाने के वर्ष भर बाद मालती ने एक बालक को जन्म दिया।
गांव भर में जलसा हो गया, पूरे गांव को ही दावत पर बुलाया गया, छप्पन किस्म के पकवान पके । भोज में शरीक हुए बच्चों ने मिठाइयों का एक अणु तक ना छोड़ा । दावत में आए हुए हर-एक व्यक्ति ने हृदय से आशीर्वाद दिया, बालक पूरे गांव की ही आंखों का तारा हो गया ।
उन दिनों स्वतंत्रता संग्राम चरम पर था, बिरजू के मन में भी आजादी की लड़ाई के प्रति श्रद्धा जाग उठी ।
जगह-जगह अंग्रेजी छावनियों में विद्रोह करने लगा, बैठकों, रैलियों, व स्वतंत्रता की योजनाएं बनाने में वह दसों दिन घर से नदारद रहने लगा । देशभक्ति का ऐसा स्वाभिमान छा गया कि घर-परिवार की सुध ना रही ।
ना ही पत्नी पर ध्यान गया, ना ही कभी बालक का विचार मन में आया ।
कहा जाता है कि उस दिन जब बिरजू ठेकेदार घर लौटा तो मालती और उसका बालक मृत पड़े थे...
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